विकिरण के बारे में भ्रांतियां व तथ्य
भ्रांति : विकिरण की कोई संरक्षित डोज़ नहीं है
तथ्य :हम प्रतिदिन सांस लेने व खाना खाने सहित कई प्रकार के विकिरण से निरंतर उद्भासित होते हैं। चिकित्सा, विद्युत उत्पादन तथा अन्य कई उपयोगों में विकिरण की थोड़ी सी मात्रा जीवनकाल को बढ़ाने तथा कई जीवन बचाने का कार्य करती है। संयुक्त राष्ट्रसंघ वैज्ञानिक समिति के अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि प्राकृतिक व मानवनिर्मित स्रोतों से निम्न-डोज़ विकिरण से जोखिम नगण्य है।
भ्रांति : विकिरण की सुरक्षित डोज़ नहीं है।
तथ्य :भ्रांति : नाभिकीय संयंत्रों से उत्पन्न विकिरण रोगों व कैंसर का कारण है।
तथ्य :नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों से बहुत कम मात्रा में विकिरण का उत्सर्जन होता है जिससे जनता या पर्यावरण को कोई ख़तरा नहीं होता। 50 वर्षों से अधिक के विकिरण मानीटरन तथा चिकित्सा अनुसंधान के बाद भी ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला है कि नाभिकीय संयंत्रों से उत्पन्न विकिरण जनता के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है।
भ्रांति : नाभिकीय ऊर्जा प्राकृतिक नहीं है।
तथ्य : लोगों के मन में एक सामान्य परंतु महत्वपूर्ण गलत धारणा यह है कि सौर ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा नहीं है। वास्तविकता बिल्कुल अलग है। हमारे सूर्य सहित सभी तारे छोटे परमाणु के नाभिकों के संगलन से बड़े परमाणुओं के नाभिक बनाकर ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। हमारा सूर्य मध्यम आयु का तारा है तथा इसमें लगभग सारी ऊर्जा हाइड्रोजन नाभिकों के संगलन से हीलियम नाभिक बनने से उत्पन्न होती है। कुछ हीलियम-हायड्रोजन तथा हीलियम-हीलियम संगलन भी होता है परंतु इनका योगदान अत्यंत कम है।
जब संगलन होता है तो दोनों नाभिकों के परमाण्विक द्रव्यमान का एक छोआ सा भाग आइंस्टीन के विख्यात सूत्र E=mc2 के अनुसार ऊर्जा में परिवर्तित होता है। सूर्य के क्रोड से सतह पर इस ऊर्जा के आने तथा अंतरिक्ष में विमोचित होने में हज़ारों वर्ष लगते हैं। सूर्य से विमोचित ऊर्जा का 99% से अधिक भाग दुर्बल गामा विकिरण है जिसे हम सूर्य का प्रकाश कहते हैं। अत: सूर्य का प्रकाश एक नाभिकीय उपोत्पाद है। सौर ऊर्जा वास्तव में नाभिकीय उपोत्पाद ऊर्जा है।
वायु-ऊर्जा सौर विकिरण से हमारे वातावरण के असमान तापन से उत्पन्न होती है अत: उसे सौर नाभिकीय के अप्रत्यक्ष परिणाम के रूप में समझा जा सकता है। वास्तव में पृथ्वी का सारा मौसम सौर नाभिकीय उपोत्पाद पर आधारित है। जीवाश्म ईंधनों को भी सौर नाभिकीय उपोत्पाद समझा जा सकता है जो क्षय-रूपांतरित पादप रसायनिकी के कारण लाखों वर्षों से भंडारित है (कोयला, तेल)। हमें उपलब्ध हर प्रकार की ऊर्जा वास्तव में सूर्य के अंदर होने वाली प्राकृतिक नाभिकीय अभिक्रियाओं का परिणाम है।
एक अन्य सामान्य भ्रांति प्रकृति में रेडियोसक्रिय तत्वों की उपस्थिति से संबंधित है। वास्तव में यह विश्व में सब जगह उपस्थित है तथा हम हर सांस के साथ तथा हर भोजन के साथ उन्हें शरीर में ग्रहण करते हैं। तारे न केवल गामा विकिरण बल्कि कई रेडियोसक्रिय तत्व उत्पन्न करते हैं जो दो अन्य प्रकार का विकिरण उत्सर्जित करते हैं। कम से कम 29 रेडियोसक्रिय तत्व प्राकृतिक रूप से उपलब्ध हैं। 40 रेडियोसक्रिय आइसोटोप हैं। इनमें से अधिकतर रेडियोसक्रिय तत्व प्राचीन सुपरनोवा से आये हैं तथा हमारी आकाश गंगा में फैले हुए हैं। इनमें यूरेनियम, थोरियम, रेडियम, बिस्मथ, पोलोनियम, प्रोटेक्टीनियम, रैडान, लेड व पोलोनियम शामिल हैं। सैद्धांतिक रूप से यह सभी भारी तत्व मूलरूप से सुपरनोवा से निकले यूरेनियम-238 (U-238) थे। U-238 रेडियोसक्रिय है तथा करोड़ों वर्षों से इसकी क्षय-श्रृंखलाओं से यह भारी तत्व बने हैं।
प्राकृतिक रूप से उपलब्ध प्लूटोनियम इनमे विशेष स्थान रखता है। सुपरनोवा से उत्पन्न अकल्पनीय बल काफी संख्या में मुक्त न्यूट्रान भी पैदा करता है। सुपरनोवा में ताजा बना U-238 का लगभग आधा भाग कुछ न्यूट्रान अवशोषित करता है तथा दो अपेक्षाकृत तीव्र रेडियोसक्रिय (बीटा) क्षय द्वारा प्लूटोनियम-239 (Pu-239) बनता है। प्लूटोनियम की अर्धायु (24000 वर्ष) तारों की आयु की तुलना में काफी कम है। बनने के लगभग 10 अर्धायु बाद रेडियोसक्रिय पदार्थ लगभग समाप्त हो जाता है। इस प्रकार मूल रूप से उत्पन्न Pu-239, लगभग 250000 वर्षों के बाद समाप्त हो गया है।
Pu-239 क्षय होकर U-235 बनाता है जिसकी अर्धायु 70 करोड़ वर्ष है। 4.5 अरब वर्ष पहले U-235 आज की तुलना में 60 गुना अधिक था। मूल U-235, 7 से कुछ कम अर्धायु तक क्षय हो चुका है और बहुत कम बचा है। इसीलिय प्लूटोनियम नहीं बचा है तथा यूरेनियम में अब U-235 की मात्रा कम रह गयी है। प्लूटोनियम की अर्धायु अपेक्षाकृत कम होने के कारण वह समाप्त हो गया है तथा उसके उत्पाद क्षयजात (daughter products) U-235 के प्राकृतिक रेडियोसक्रिय क्षय से बाकी उपर्लिखित रेडियोसक्रिय आइसोटोप उत्पन्न हुए हैं। इन सबकी उत्पत्ति प्राथमिक (primordial) प्लूटोनियम से हुई है। चूंकि 200 करोड आकाशगंगाओं वाले ब्रह्मांड में सुपरनोवा गतिविधि लगातार होती रहती है अत: प्लूटोनियम की पारंपारिक विश्वास के विपरीत प्राकृतिक रूप से उपलब्ध तत्व माना जा सकता है।
परंतु हमारे पर्यावरण में केवल यूरेनियम के क्षयजात उत्पाद वाले भारी रेडियोसक्रिय तत्वों के अलावा और भी तत्व हैं। इनमें पोटेशियम, जो मानव जीवन व स्वास्थ्य के लिये आवश्यक खनिज़ है का आइसोटोप काफी उपलब्ध है। यह आइसोटोप K-40, ब्रह्मांड किरणों तथा ऊपरी वातावरण में उपस्थित कुछ अणुओं के टकराव से उत्पन्न होता है। यह आइसोटोप पृथ्वी पर उपस्थित कुल पोटेशियम का 0.1% है। अपनी लंबी अर्धायु (1.3 अरब वर्ष) के कारण यह अभी तक समाप्त नहीं हुआ है तथा अगले 9 अरब वर्षों तक समाप्त नहीं होगा। पृथ्वी की मिट्टी मे अपनी अपेक्षाकृत अधिक प्रचुरता (abundance) के कारण पोटेशियम हर जगह पाया जाता है। K-40 आइसोटोप, अन्य दो अरेडियोसक्रिय आइसोटोपों K-39 (39%) तथा K-41 (<7%) के साथ पाया जाता है। प्रकृति इनको अलग अलग नही करती। अत: जब हम केले या ब्रोकोली जैसे पोटेशियम युक्त पदार्थ खाते हैं तो हम K-40 की इतनी मात्रा भी ग्रहण करते हैं जो अधिकतर नाभिकीय ऊर्जा सुविधाओं के अतिसंवेदी विकिरण मानीटरों को शुरू कर सकती है। दो केले इसके लिये काफी हैं (ऐसा मेरे साथ हो चुका है)। पोटेशियम, दूघ, सभी डेयरी उत्पादों तथा हर प्रकार की हरी सब्जियों में भी पाया जाता है। यद्यपि यह सर्वव्यापक एवं अदृष्य है परंतु अपरिहार्य है।
एक और रेडियोसक्रिय आइसोटोप जिसे हम प्राकृतिक रूप से ग्रहण करते हैं, ट्रीशियम है (हायड्रोजन का आइसोटोप H-3) यह पृथ्वी की सतह पर पाये जाने वाले सभी तरह के जल तथा पीने के पानी में लेश मात्रा में पाया जाता है। प्रकृति रेडियोसक्रिय तथा अरेडियोसक्रिय पानी के अणुओं में भेद नहीं करती। हम प्रत्येक गिलास पानी पीने के साथ थोड़ीसी मात्रा में ट्रीशियम ग्रहण करते हैं। इसी प्रकार हमारी सांस लेने वाली हवा में रैडान गैस की थोड़ीसी मात्रा रहती है। इन सब तथ्यों से यह अपरिहार्य सत्य स्थापित होता है कि हम कहीं भी जायें, कुछ भी करें तथा किसी से भी मिलें, सभी व्यक्ति (हमारे सहित) प्राकृतिक रूप से रेडियोसक्रिय हैं।
रेडियोसक्रिय अपशिष्ट - भ्रांतियां एवं वास्तविकता
- विकिरण एवं रेडियोसक्रिय अपशिष्ट के बारे में कई भ्रांतियां हैं।
- जो बाते मानव स्वास्थ्य व संरक्षा के लिये प्रतिकूल है, उनके नियमन की कार्यवाही की जाती है।
गत वर्षों में जनता तथा कुछ अन्य समूहों द्वारा नाभिकीय उद्योग और विशेषत: रेडियोसक्रिय अपशिष्ट के बारे में प्रसार माध्यमों में कई दृष्टिकोण व आशंकायें जाहिर की गयी हैं। ये प्रश्न उठाये गये हैं कि क्या नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम चालू रहना चाहिये जबकि अपशिष्ट से निपटने का मुद्दा हल नहीं हुआ है।
इनमें से कुछ दृष्टिकोण व आशंकायें इस प्रकार हैं :
कई लोगों का मत है कि रेडियोसक्रिय अपशिष्ट निपटान के हल के बिना नाभिकीय उद्योग जारी नहीं रहना चाहिये। परंतु निपटान के लिये आवश्यक तकनीकें विकसित करके लागू की गयी हैं। अब यह सुनिश्चित करना है कि प्रस्तावित हल जनता को स्वीकार्य हैं।
वर्तमान में सभी वर्गों के रेडियोसक्रियता अपशिष्ट के लिये प्रबंधन प्रक्रियायें लागू है या नियोजित हैं। निम्न सक्रियता अपशिष्ट (LLW) तथा मध्यम सक्रियता अपशिष्ट (ILW) उत्पन्न अपशिष्ट का अधिकतर भाग (97%) हैं। इन्हें कई देशों में सतह समीपी निक्षेपों में निपटाया जाता है तथा इस प्रक्रिया में कोई दीर्घकालीन जोखिम नहीं है। ये कार्य कई देशों में कई वर्षों से नियमित रूप से किया जा रहा है।
उच्च सक्रियता अपशिष्ट (HLW) को संरक्षित रूप से बंद करके अंतरिम भंडारण सुविधाओं में उसका प्रबंधन किया जाता है। उच्च सक्रियता अपशिष्ट (प्रयुक्त ईंधन सहित, जब उसे अपशिष्ट माना जाता है) अन्य उद्योगों की तुलना में बहुत कम होता है। आजकल पूरे विश्व में उच्च सक्रियता अपशिष्ट प्रतिवर्ष लगभग 12000 टन बढ़ रहा है जो एक बास्केट-बाल कोर्ट पर दोमंजिला इमारत बनाने या लगभग 100 डबलडेकर बसे बनाने के समतुल्य है तथा अन्य औद्योगिक अपशिष्टों की तुलना में कम है। अंतरिम भंडारण सुविधाओं का प्रयोग अपशिष्ट की इस मात्रा को बंद रखने व उसका प्रबंधन करने के लिये उपयुक्त पर्यावरण प्रदान करता है। ये सुविधायें अपशिष्ट के दीर्घकालीन भूगर्भीय निपटान से पहले ऊष्मा व रेडियोसक्रिय क्षय का कार्य भी करती हैं। वास्तव में 40 वर्ष के बाद रेडियोसक्रियता, भुक्तशेष ईंधन निकालने के लिये रिएक्टर बंद करने के समय की तुलना में 1/1000 मात्रा रह जाती है। अंतरिम भंडारण भुक्तशेष ईंधन तब तक रखने का उचित उपाय है जब तक कि उस देश में इतना भुक्तशेष ईंधन नहीं बन जाता जो निक्षेप के विकास को किफायती बना सके।
उच्च सक्रियता अपशिष्ट की सक्रियता की अर्धायु अधिक होने के कारण, दीर्घकालीन उपाय के लिये इसके निपटान का समुचित प्रबंधन आवश्यक है। इसके लिये ऐसे उपायों का विकास हो रहा है जो संरक्षित, पर्यावरण के अनुकूल तथा जनता को स्वीकार्य हों। गहरा भूगर्भीय निपटान सर्वाधिक उपयुक्त उपाय है तथा फिनलैंड, स्वीडन, फ्रांस व अमेरिका आदि देशों में निक्षेप परियोजनायें काफी प्रगत स्थिति में हैं। अमेरिका में यूरेनियमोत्तर अपशिष्ट (दीर्घ अर्धायु मध्यम स्तर अपशिष्ट जिसमें प्लूटोनियम जैसा सैनिक रूचि का पदार्थ भी है) के निपटान के लिये मेक्सिको में एक गहरा भूगर्भीय अपशिष्ट निक्षेप (अपशिष्ट पृथकन पायलट संयंत्र) प्रचालित है। यद्यपि प्रस्तावित यूका पर्वत निक्षेप के प्रति नेवादा प्रदेश विरोध प्रदर्शित कर रहा है। इन देशों ने यह प्रदर्शित कर दिया है कि सामाजिक व राष्ट्रीय स्तर पर राजनैतिक व जनता स्वीकार्यता के मुद्दे हल किये जा सकते हैं।
इस प्रकार नाभिकीय उद्योग ने सभी प्रकार के अपशिष्ट के निपटान की विधियां स्थापित की हैं तथा कई देशों में जनता द्वारा अनुमोदित कार्यक्रमों की स्वीकार्यता में प्रगति हुई है। यह महत्वपूर्ण है कि उच्च सक्रियता अपशिष्ट के दीर्घकालिक निपटान के बारे में इन देशों द्वारा स्थापित मार्ग का अन्य नाभिकीय ऊर्जा उत्पादक देश भी अनुसरण करें। प्रौद्योगिकी की उपलब्धता तथा जन स्वीकार्य स्थलों के विकास के निरंतर प्रगति के कारण, नयी नाभिकीय सुविधाओं का निर्माण जारी रखना तर्कसंगत है। जीवाश्म ईंधनों की तुलना में, पर्यावरण की दृष्टि से नाभिकीय ऊर्जा से स्पष्ट लाभ हैं। अपने सभी अपशिष्टों के उचित प्रबंधन के कारण नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र कोई प्रदूषण नहीं उत्पन्न करते।
भूगर्भीय एवं तकनीकी पहलूओं को देखते हुए, नाभिकीय ऊर्जा के लिये ईंधन की उपलब्धि लगभग असीमित है। पृथ्वी के पटल में पर्याप्त यूरेनियम हैं तथा ऐसी तकनीक सिद्ध की जा चुकी है (यद्यपि अभी वह पूरी तरह से किफायती नहीं है) कि हम आज की तुलना में इससे 60 गुना अधिक ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं।
नाभिकीय ऊर्जा का संरक्षा रिकार्ड अन्य बड़ी औद्योगिक प्रौद्योगिकी की तुलना में बेहतर है। नयी सुविधाओं के निर्माण के लिये इन सभी लाभों को ध्यान में रखा जाना चाहिये।