मैं रेडियोलाजिकल चिकित्सा व्यवसायिक हूँ
नैदानिक रेडियोलाजी, रेडियोथेरेपी तथा नाभिकीय औषध के व्यवसायिकों के लिये विकिरण संरक्षा पहलुओं पर जानकारी के लिये निम्न योजनकों (links) पर क्लिक करें।
नैदानिक रेडियोलाजी में रेडियोलाजी चिकित्सा व्यवसायिक
चिकित्सा व्यवसायिक को आवश्यकता के आधार पर ही एक्स-रे परीक्षण करना चाहिये। चिकित्सा व्यवसायिक को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिये :
- उसे संतुष्ट होना चाहिये कि आवश्यक जानकारी रोगी के पिछले परीक्षणों या आयनकारी विकिरण के बिना किसी अन्य परीक्षण द्वारा उपलब्ध नहीं है।
- रोगी को मिलने वाली डोज़ का ध्यान रखना चाहिये कि वह अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ स्तरों या नियामक संस्था द्वारा संस्तुत स्तरों के अनुरूप हो।
- डोज़ को कम करने की संभावना का विशेषत: बाल चिकित्सा विधियों में, समय-समय पर आकलन करना चाहिये।
- कंप्यूटेड टोमोग्राफी व हस्तक्षेपी रेडियोलाजी विधियों में रोगी को मिली डोज़ को मानीटर करके उसकी रिपोर्ट रोगी को देनी चाहिये।
- जटिल रेडियोलाजिकल विधियों में विकिरण के संभावित प्रभावों के बारे में रोगी को समझाया जाना चाहिये।
- उद्भासन प्रोटोकाल को न्यूनतम डोज़ के साथ इष्टतम चित्र गुणवत्ता प्राप्त करने के लिये निर्धारित किया जाना चाहिये।
- एक्स-रे उपकरण तथा विशेषत: हस्तक्षेपी रेडियोलाजी व कंप्यूटेड टोमोग्राफी उपकरणों के कमीशनन से पूर्व उस उपकरण के बारे में आपूर्तिकर्ता से विशेष प्रशिक्षण लेना चाहिये।
- विकिरण संरक्षण व डोज़ के इष्टतमीकरण के लिये विकिरण संरक्षा अधिकारी से प्रशिक्षण लेना चाहिये।
बाल चिकित्सा रेडियोलाजी में विकिरण संरक्षण
भूमिका :
देश में पिछले दशक में चिकित्सीय एक्स–रे उपकरणों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। साथ ही कंप्यूटेड टोमोग्राफी व हस्तक्षेपी रेडियोलाजी जैसी उच्च विकिरण डोज़ विधियों का प्रयोग भी बहुत अधिक हो रहा है। अत: चिकित्सकों में भी विकिरण संरक्षा की जानकारी का प्रसार आवश्यक हो गया है। यद्यपि इस बात का कोई निर्णायक प्रमाण नहीं है कि विकिरण से कैंसर या अनुवांशिक प्रभाव होते हैं परंतु बृहत जनसंख्या अध्ययनों में विकिरण की छोटी डोज़ से भी कैंसर में थोडी वृद्धि देखी गयी है।
बच्चे जैविक रूप से अधिक संवेदनशील है तथा उनमें विकिरण का जोखिम (IAEA 71) उनकी संवेदनशीलता, आयु छरण की अधिक संभावना तथा अधिक अवधि में मिली कुल डोज़ के कारण वयस्कों की तुलना में अधिक है। बच्चों मे अधिक विकिरण उनके संवेदनशीलता, उनके विकास काल में कोशीय व उपकोशीय स्तर पर वृद्धि के कारण हैं। चूंकि कैंसर वाले ट्यूमर उद्भासन के कई वर्षों के बाद प्रभाव प्रगट करते हैं अत: अधिक आयु की संभावना के कारण ट्यूमर के प्रभावी होने के साथ बच्चों के जीवित होने की प्रायिकता अधिक है।
विकिरण संरक्षण सिद्धांत :
विकिरण संरक्षण के मूल सिद्धांत हैं – औचित्य, इष्टतमीकरण तथा डोज़ सीमायें चिकित्सा के क्षेत्र में आयनकारी विकिरण का प्रयोग उचित है क्योंकि यह निदान व चिकित्सा दोनों में जीवन रक्षक सिद्ध हुई है। परंतु नीचे दिये गये उदाहरण (संदर्भ ICRP-121) अनुचित उद्भासन की श्रेणी मे आते हैं :
- मिर्गी से पीडि़त शिशु या बच्चे की खोपड़ी का रेडियोग्राफ
- सरदर्द से पीडि़त शिशु या बच्चे की खोपड़ी का रेडियोग्राफ
- सिनुसाइटिस की आशंका वाले शिशु या 6 वर्ष से कम आयु के बच्चे का साइनस रेडियोग्राफ
- अंगों की चोट की स्थिति में तुलना के लिये विपरीत साइड का रेडियोग्राफ
- 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों के स्कैफायड रेडियोग्राफ
- 3 वर्ष से कम आयु के बच्चों की नाक की हड्डी के रेडियोग्राफ
- गहन चिकित्सा कक्षों (ICU) में नित्यप्रति छाती का परीक्षण
- केवल चिकित्सीय विधिपरक (medico-legel) उद्देश्य से प्रार्थित रेडियोलाजिकल परीक्षण
उद्भासन का इष्टतमीकरण, दूसरा चरण है। यद्यपि एक्स-रे परीक्षण की आवश्यकता तो होती है परंतु अधिकतर केसों में उद्भासन को इष्टतम नहीं किया जाता। थोड़ासा ध्यान देने से उद्भासन को इष्टतम किया जा सकता है (ALARA- न्यूनतम व्यवहारिक संभव उद्भासन) प्रत्येक कार्यविधि के लिये इष्टतमीकरण विधियां इस लेख में बतायी गयी हैं।
चिकित्सीय उद्भासनों (रोगियों) के लिये कोई ‘डोज़ सीमायें’ नहीं हैं। सक्षम प्राधिकारी द्वारा निर्दिष्ट सीमायें विकिरण कार्मिकों तथा जनता पर लागू होती हैं। रोगियों के लिये ‘नैदानिक संदर्भ स्तर’ बनाये गये है जिन्हे इस लेख में बताया गया है।
बच्चों के लिये उद्भासन का इष्टतमीकरण कैसे हो ?
- प्रतिकूल स्थितियों” का ध्यान रखना
- उचित उपकरण का चुनाव करना
- विभिन्न कार्यविधियों के लिये उचित प्रचालन विधि अपनाना
प्रतिकूल स्थितियां :
- आयातित उपकरणों, जिन्हें प्रयोग से पहले भारतीय जनता के लिये अनुकूलित नहीं किया गया है, के अनुपयुक्त स्वचालित उद्भासन तंत्रों का प्रयोग करना;
- बच्चों के लिये भी वयस्क उद्भासन प्रोटोकाल का प्रयोग करना;
- बिना डिज़ाइन अनुमोदन (एईआरबी द्वारा टाईप अनुमोदन) वाले घटिया उपकरणों का प्रयोग करना तथा उपकरणों का सावधिक गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षण न करना;
- उपकरण में उपलब्ध सभी डोज़-न्यूनीकरण उपाय न अपनाना;
- अप्रशिक्षित कार्मिकों द्वारा रेडियोग्राफ लेना, जो इसके प्रभाव को नही समझते;
- निदान के वैकल्पिक उपायों (एमआरआई, यूएसजी) आदि पर विचार न करना;
- उसी बीमारी के लिये पिछले एक्स-रे रिकार्ड न देखना, निदान में किसी अतिरिक्त लाभ के बिना भी चित्रों की सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता की आशा करना, अनावश्यक परीक्षण की संस्तुति करना।
उपकरण का सही चुनाव
- अनधिकृत आपूर्तिकर्ताओं से पुनर्सज्जित उपकरण नहीं खरीदना चाहिय
- ऐसे उपकरणों की डिज़ाइन एईआरबी द्वारा अनुमोदित नहीं है। .
डिज़ाइन विनिर्देशों का पालन किया जाना चाहिये :
- उपकरण एईआरबी द्वारा टाईप अनुमोदित होना चाहिये
- उच्च आवृत्ति तथा उच्च शक्ति (kW) अर्थात अधिक mA(>300 mA) वाले उपकरणों का चुनाव करना चाहिये क्योंकि उनमें उद्भासन समय कम लगता है तथा चित्रण को दोहराना नहीं पड़ता
- छोटा फोकल बिंदु 0.5 - 0.8 मि.मि.
- हटाने योग्य प्रकीर्णन-रोधीग्रिड
- बाल-चिकित्सा प्रोटोकाल कार्बन फाइबर कोच के उचित अंशांकन के प्रावधान सहित स्वचालित उद्भासन नियंत्रण
- निरंतर मानीटरन व इष्टतमीकरण के लिये रोगी का डोज़ रिकार्ड करने के तंत्र का प्रावधान होना बेहतर है।
पूर्व-स्वामित्व वाले उपकरण के प्रयोग से सावधानी :
यदि पूर्व-प्रयुक्त उपकरण खरीदा जाना हे तो वह मूल निर्माता के विनिर्देशों तथा स्वीकार्यता के स्थानीय न्यूनतम मानदंडों का पालन करने वाला होना चाहिये। इन बातों का प्रमाण प्राप्त किया जाना चाहिये।
समुचित प्रचालन विधियां :
नियामक निरीक्षण के दौरान एईआरबी अधिकारियों ने प्रयोक्ताआं को उचित परामर्श प्रदान किया है। अधिकारियों ने विशेषत: शिशुओं के उद्भासन में कमियां पायी :
- ‘बेबीग्राम’ न लिये जायें, केवल आवश्यक क्षेत्र का उद्भासन किया जाये।
- समांतरित्र के खराब बल्ब को तुरंत बदलना चाहिये। गाइड के रूप में प्रकाशबीम के न होने से समांतरित्र पूरा खुल सकता है तथा शिशु के पूरे शरीर को उद्भासन मिल सकता है (नीचे का उदाहरण देखें)।
रेडियोग्राफी में इष्टतमीकरण
- परिरक्षक व स्थिरीकरण युक्तियों का प्रयोग करना चाहिये। ये युक्तियां सही समांतरण तथा परिरक्षण युक्तियों को सही स्थान पर रखकर रेडियोसंवेदी अंगों (जननग्रंथियों, स्तनों, आंख के लेंस तथा थायरायड) की सुरक्षा करती है।
- प्रकीर्णन रोधी ग्रिड का उचित प्रयोग करना चाहिये। ये ग्रिड विकिरण के प्रकीर्णन को कम करके चित्र की गुणवत्ता बढाती है। परंतु इसके प्रयोग की एक हानि यह है कि बड़े उद्भासन प्राचलों का प्रयोग करना पड़ता। बच्चों के केस में डोज़ में 3-5 गुना वृद्धि होती है परंतु चित्र की गुणवत्ता में कोई विशेष लाभ नहीं होता।
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उद्भासन के ‘बाल-अनुकूल’ प्राचलों की पहचान करनी चाहिये : उच्च kV, न्यूनतम उद्भासन समय तथा उच्च mA । फोकल बिंदु से फिल्म का अधिक दूरी तथा अतिरिक्त फिल्टरों का प्रयोग महत्वपूर्ण है।
फ्लूरोस्कोपी एवं हस्तक्षेपी रेडियोलाजी
हस्तक्षेपी रेडियोलाजी विधियों में निर्धारणात्मक चोट लगने की संभावना होती है अत: बच्चों में इन विधियों का प्रयोग विकिरण संरक्षण में अर्हता प्राप्त एवं प्रशिक्षित तकनीकविदों की सहायता से अनुभवी चिकित्सकों द्वारा किया जाना चाहिये। .
बच्चों के लिये उपयुक्त हस्तक्षेपी रेडियोलाजी उपकरणों का प्रयोग करें :- समांतरित्रों का प्रयोग अनिवार्य है
- रोगी के आमाप के अनुकूल न्यूनतम डोज़ प्रोटोकाल, फ्रेमरेट (पल्स्ड फ्लूरोस्कोपी के लिये 3.5 – 7.5 पल्स/सेकंड) तथा प्रक्रिया अविधि (सिने मोड में) प्रयोग करें। चित्रण प्राप्ति प्रक्रिया आवश्यक होने पर ही की जानी चाहिये।
- ‘अंतिम चित्र सुरक्षण’ विकल्प का प्रयोग किया जाना चाहिये
- ट्यूब से रोगी की दूरी अधिकतम तथा रोगी के संसूचन की दूरी न्यूनतम रखी जानी चाहिये
- प्रकाश बीम डायफ्राम के प्रयोग से क्षेत्रों को संबद्ध क्षेत्र के अनुरूप रखा जाना चाहिये
- इलेक्ट्रानिक आवर्धन को न्यूनतम रखना चाहिये। जहां संभव हो, ‘डिजिटल ज़ूम’ का प्रयोग करना चाहिये
- चित्र तीव्रकारी तथा/अथवा रिसेप्टर को फ्लूरोस्कोपी शुरू करने से पहले ही संबद्ध क्षेत्र पर केंद्रित करना चाहिये (फ्लूरोस्कोपी के बीच में नहीं)
- फ्लूरोस्कोपी अवधि की चेतावनी का ध्यान रखना चाहिये
कंप्यूटेड टोमोग्राफी
चित्र की उच्च गुणवत्ता हमेशा आवश्यक नहीं होती। आदत के कारण उच्च चित्र गुणवत्ता के लिये कार्य किया जाता है (जिसमें बड़े उद्भासन प्राचल प्रयोग करने पड़ते हैं)। इलेक्ट्रानिक शोर (noise) को कम करने में डोज़ बढ़ती है। यदि स्कैन आवश्यक नैदानिक जानकारी प्रदान कर रहा है तो शोर स्वीकार्य है। .
इन गलतियों से बचें :
- केवल आवश्यक लंबाई को स्कैन करना चाहिये। एक जैसे क्षेत्रों की स्कैनिंग को न्यूनतम रखना चाहिये।
- श्रोणीय [pelvic (उच्च वैषम्य क्षेत्र)] तथा उदरीय [abdomen (निम्न वैषम्य क्षेत्र)] क्षेत्रों के लिये एक जैसे उद्भासन कारकों का प्रयोग नहीं करना चाहिये।
- 1 से अधिक पिच (जैसे 1.5) के साथ स्पाइरल स्कैन का प्रयोग करना चाहिये यदि इससे mA में अपने आप वृद्धि नहीं हो जाती।
- यदि पतली स्लाइसों की आवश्यकता न हो तो परस्पर व्यापन पुनर्निमाण विधि के साथ मोटे समांतरण का प्रयोग करना चाहिये।
- निकस्थ क्षेत्रों को अलग प्रोटोकाल से स्कैन करते समय परस्पर व्यापन को कम रखना चाहिये।
- विभिन्न स्लाइस मोटाइयों के लिये, जहां तक संभव हो, पुननिर्माण विधि का प्रयोग करें।
- अधिकतर स्थितियों में एकल कला (single phase) स्कैन पर्याप्त होते हैं। वैषम्य-पूर्व व वैषम्य-उपरांत या विलंबित स्कैन बच्चों के बहुत कम केसों में कोई अतिरिक्त जानकारी देते हैं परंतु डोज़ को दुगना या तिगुना कर देते हैं।
- किसी परीक्षण में आयतन को बढ़ाना नहीं चाहिये (Z-अक्ष अति पुंजन) जिसके घूर्णन की संख्या तथा उपच्छाया का प्रभाव बढ़ता है।
रेडियोथेरेपी चिकित्सक (विकिरण कैंसर विशेषज्ञ)
नाभिकीय औषध चिकित्सक